आचर्य रत्नसेन का प्रवचन
ईरोड. आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि प्रत्येक जीव मेें कोई न कोई भय है। इनमें सबसे बड़ा भय मरण का है। इससे हर कोई बचना चाहता है। वह100 बरस का भी हो जाए तो मरना नहीं चाहता। मरने से बचने के लिए वह सारे उपाय अपना लेता है।
आचार्य रविवार को ईरोड स्थित जैन भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति जीवन भर बहाना बनाता रहता है कि उसके पास सत्कार्य करने के लिए कोई समय नहीं है। परंतु जैसे ही शरीर में बीमारी का पता चलता है वह सभी कार्य छोड़ कर उसके उपचार में लग जाता है। बीमारी मौत का कारण न बन जाए इसके लिए वह यथाशक्ति पूरा इलाज करता है।
उन्होंने कहा कि तीर्थंकर ने हमें ऐसे मार्ग बताए कि जहां कभी मरना नहीं पड़ता। जैसे जंगल में भटकते आदमी को वहां से निकलने के लिए सही मार्ग की तलाश होती है, उसी प्रकार सही मार्ग नहीं मिलने पर भटकना पड़ता है। सही दिशा में एक कदम भी यथार्थ है।
आचार्य ने कहा कि गलत दिशा में कितना ही दौड़ें लेकिन मुक्ति नहीं मिलती। चार गति वाले संसार में आत्मा अनादिकाल से भटक रही है। संपूर्ण दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए मोक्ष मार्ग ही इच्छा होती है। परमात्मा के बताए मार्ग का अनुसरण करने पर ही मुक्ति प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि संसार में सुख पाने के लिए साधन की आवश्यकता होती है। सुखों में पराधीनता का सबसे बड़ा दुख है। जबकि मोक्ष में सुख पाने के लिए किसी भी साधन की जरुरत नहीं।
१५ से तीन दिवसीय कार्यक्रम : मुनि भद्रकंर विजय की ३९ वीं स्वर्गारोहण तिथि के उपलक्ष्य में १५ मई से तीन दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम होंगे। १५ मई को प्रथम गणधर गौतम स्वामी की भाव यात्रा कार्यक्रम सुबह ९ बजे से जैन भवन में होगा।
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