संयम के बिना जीवन अधूरा : जैन मुनि हितेशचंद्र विजय
- Jain News Views
- Aug 12, 2019
- 1 min read

कोयम्बत्तूर.
जैन मुनि हितेशचंद्र विजय ने कहा कि जो धर्म की रक्षा करता है धर्म स्वयं उसकी रक्षा करता है। जो जीवों के प्रति प्रेम वात्सल्य, करुणा व दया करेगा उसे कभी भी दवा की जरुरत नहीं होगी।
जैन मुनि रविवार को सुपाश्र्वनाथ आराधना भवन में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने महामंत्र का महत्व समझाते हुए संयम को सफलता की सीढ़ी बताया। जैन मुनि ने कहा कि सिद्ध, आचार्य व उपाध्याय बनने से पूर्व साधु जीवन को स्वीकार करना होगा। संयम के बिना जीवन अधूरा है। भीख मांगने वाले ने एक दिन का आत्मोहार किया संयम ने उसे संप्रति राजा जैसा जीवन दिया ।उसने अपने जीवन में सवा करोड़ जिन प्रतिमाएं बनवाईं व सवा लाख जिन मंदिर बनवाए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार बर्फ से पानी निकल जाएगा तो कुछ नहीं बचेगा इसी प्रकार संतों से भगवान का प्रेम निकल जाएगा तो कुछ नहीं बचेगा। मुनि ने कहा कि कष्ट के बिना किसी वस्तु को साध्य करना है तो सत्संग ही एक उपाय है। मन काम नहीं करता उसमें संगत का भी असर होता है। उन्होंने कहा कि वासना में लिप्त मनुष्य की संगति घातक व संयमी व समयकत्व करने वाले की संगति उत्तम होती है। महावीर के संग गौतम भी रहे और गौशालक। गौशालक कुछ नहीं बन पाया। भैरुलाल लुक्कड़ ने नवपद आराधना के जरिए नव तीर्थों की वंदना कराई।
Comments